कभी कभी किसी उलझन में कुछ यूँ उलझ सा जाता हूँ
लाख करू कोशिस मगर ये भी समझ न पाता हूँ|
क्या रस न आई तन्हाई मुझे, जिससे मै घबराता हूँ
या प्यार है इस तन्हाई से जो महफ़िल में शर्माता हूँ|
इस तन्हाई में जाकर ही तो सपनो में खो जाता हूँ
और सपनो में तन्हाई हो तो सपनो से कतराता हूँ|
मुझको कभी न मालूम हुआ क्यूँ साथ मेरे है तन्हाई
क्यूँ अपनों में भी अक्सर मै तनहा सा हो जाता हूँ|
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